Holi Alert : सावधान! जश्न के दुश्मनों ने होली के रंगों में किया है ‘मौत’ का पूरा इंतजाम

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विशेष संवाददाता

नई दिल्ली। होली का त्योहार है रंगों का त्योहार। अगर आप आजकल बाजार जाते हैं तो दुकाने अलग-अलग रंगों से सजी नजर आ रही हैं, लेकिन त्योहारों के ये रंग दिखने में जितने सुंदर नजर आ रहे हैं 70 प्रतिशत से ज्यादा रंग जो बाजार में मिल रहे हैं वो खतरनाक बीमारियों को दावत दे रहे हैं। बीमारियां भी कोई छोटी-मोटी नहीं बल्कि कैंसर जैसी बेहद गंभीर बीमारी।

कुछ रंगों से हो सकता है कैंसर!

होली पर आप जिससे भी मिलेंगे वो आपको रंगों में रंग ही देगा, लेकिन सवाल ये है कि वो रंग कैसे हैं? हर कोई बाजार से महंगे से महंगे रंग खरीदता ये सोचकर कि उनके अपनों को इन रंगों से कोई दिक्कत न हो। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से हर्बल रंगों का बाजार काफी ज्यादा बढ़ गया है, लेकिन आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि हर्बल रंगों की पैंकिंग में ही सबसे ज्यादा मिलावट हो रही हैं। वजह है एक तो लोग हर्बल देखकर इन्हें ज्यादा से ज्यादा खरीदते हैं और दूसरी वजह इनके दाम काफी ज्यादा वसूले जा सकते हैं।

‘जहरीले रंगों’ से बच्चों को है सबसे ज्यादा खतरा

इसके अलावा एक और बात होली पर सबसे ज्यादा देखी जाती है कि लोग पक्के रंग खरीदने की कोशिश करते हैं ताकि उनका लगाया हुआ रंग दूसरे के चेहरे पर लंबी छाप छोड़े। अगर आप भी होली के रंग खरीदने की तैयारी कर रहे हैं तो पहले जान लीजिए वो खतरनाक रंग जिनसे आप हर हाल में खुद को और अपने परिवार को बचाना है। खासकर छोटे बच्चों को क्योंकि बच्चों की स्किन बेहद नाजुक होती है और केमिकल वाले रंग उनकी स्किन में अंदर तक एबजॉर्ब हो जाते हैं।

किन 3 रंगों से होती हैं बीमारियां?

  • सबसे ज्यादा खतरनाक है सिल्वर कलर। सिल्वर कलर सबसे ज्यादा पक्का होता है और अक्सर बच्चे इस रंग को खरीदने की काफी जिद करते हैं। सिल्वर कलर को मजबूत और चमकदार बनाने के लिए एल्यूमीनियम ब्रोमाइड मिलाया जाता है जो सीधे-सीधे स्किन कैंसर को दावत देता है। कोशिश करिए अपने बच्चों, परिवार और दोस्तों को सिल्वर कलर तो बिल्कुल न लगाएं।
  • चमकीला रंग भी कई लोग होली खेलने के लिए इस्तेमाल करते हैं। चमकीले रंग में लैड यानी शीशा होता है। इससे स्किन एलर्जी काफी ज्यादा होता है। बेशक ये दिखने का फी अच्छा लगता है, लेकिन इससे 80 प्रतिशत तक एलर्जी की संभावना रहती ही है।
  • डॉर्क ग्रीन कलर से भी आपको दूरी बनानी चाहिए। अक्सर डार्क ग्रीन कलर में गुलाल मार्केट में बहुत ज्यादा मिलता है और चेहरे में लगाने में काफी सुंदर भी दिखता है, लेकिन इस कलर को डार्क रंग देने के लिए इसमें कॉपर सल्फेट मिलाया जाता है। कॉपर सल्फेट आंखों की बीमारी कर सकता है। अगर ये आंखों में चला गया तो रौशनी तक जा सकती है।

कैसे करें ‘जहरीले रंगों’ की पहचान?

होली के रंग खरीदते समय आप इनकी खूबसूरती से ज्यादा इस बात का ख्याल रखें कि केमिकल वाले न हों। आप खुद भी रंगों की पहचान कर सकते हैं। इन तीन रंगों को तो खरीदने से बचे हीं। इसके अलावा भी रंगों में जो मिलावट होती है उसे पहचानें। कुछ तरीके हैं जिनकी मदद से आप उनकी पहचान कर सकते हैं।

जिस भी रंगों में आपको चमक नजर आए उसे बिल्कुल न लें। रंगों में चमक बढ़ाने के लिए शीशे के छोटे-छोटे कण डाले जाते हैं, दिखने में वो खूबसूरत लगता है, लेकिन कई बार बड़ी मुसीबत बन सकता है।

डॉर्क कलर लेने के बजाय हल्के रंगों को तरजीह हैं। रंगों को ज्यादा गाढ़ा बनाने के लिए उसमें और ज्यादा केमिकल मिलाए जाते हैं।

आप थोड़ा सा पानी लेकर भी रंगों की पहचान कर सकते हैं। अगर रंग में केमिकल या लैड होगा तो वो पानी में नहीं घुलेगा।

एक और चीज है जो नकली रंगों में सबसे ज्यादा होती है और वो है एक तरह की गंध यानी स्मेल। अगर आपको गुलाल में पेट्रोल जैसी या फिर केमिकल जैसी स्मेल आए तो समझ जाइए वो रंग आपको बीमारी दे सकता है।

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