नई दिल्ली। पत्नी को दिए जाने वाले गुजारा भत्ता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि लोन की ईएमआई कितनी है, कब देनी है इन सबसे ज्यादा प्राथमिकता पत्नी को गुजारा भत्ता देने की होना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भूयान की बेंच ने यह फैसला एक पति की याचिका को खारिज करते हुए दिया। पति, जो एक डायमंड फैक्ट्री का मालिक है, ने अदालत से अनुरोध किया था कि वह अपनी अलग हो चुकी पत्नी को बकाया गुजारा भत्ता देने में असमर्थ है, क्योंकि उसकी फैक्ट्री घाटे में चल रही है और उस पर भारी कर्ज है। अदालत ने स्पष्ट किया कि तलाकशुदा पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति की संपत्ति पर प्राथमिक अधिकार रखती है। अदालत ने कहा, जीने का अधिकार, सम्मान के साथ जीने का अधिकार, और एक बेहतर जीवन का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित हैं। इन अधिकारों के तहत गुजारा भत्ता मौलिक अधिकार के समान है और किसी भी देनदार के कर्ज की वसूली के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है। फैसले में कहा गया कि महिला के पूर्व पति को जल्द से जल्द बकाया गुजारा भत्ता चुकाना होगा। यदि पति इसमें विफल रहता है, तो परिवार अदालत उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकती है, जिसमें पति की अचल संपत्ति की नीलामी करके पत्नी को भुगतान सुनिश्चित करना शामिल है।