नई दिल्ली। महान कवि रविंद्र नाथ टैगोर की पावन धरती पर महत्वपूर्ण मुकाम हासिल करने वाले वरिश्ठ आईपीएस ज्ञानवंत सिंह का चुनार से कोलकाता तक पहुंचने का सफर काफी दिलचस्प है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के चुनार रेलवे स्टेशन कॉलोनी में किशोरावस्था गुजारने वाले ज्ञानवंत मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बचपन में ज्ञानवंत को लोग प्यार से ज्ञान के नाम से पुकारते थे। ज्ञान सिर्फ नाम के ज्ञान नहीं है, बल्कि यह बचपन से ही ज्ञानी थे। कहते हैं कि होनहार पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं। यह कहावत ज्ञान के परिप्रेक्ष्य में सटीक बैठती है। बचपन से शांतिप्रिय होने के साथ-साथ दिल में ही कुछ खास करने की तमन्ना रखने वाले ज्ञान की परवरिश बेहद सादगी में हुई। इनके बचपन के सहपाठी दीपक सरकार बताते हैं कि ज्ञान जब कक्षा 8 में था तो उसे दसवीं तक का अच्छा खासा ज्ञान होता था। उस वक्त स्कूल में ही साथी कहते थे कि ज्ञान जरूर बड़ा अफसर बनेगा। खेलकूद में कम पढ़ाई में ज्यादा रुचि रखने वाले ज्ञान अपने रेलवे क्वार्टर के पीछे खाली पड़ी जमीन में विकेट गाड़ कर कुछ बच्चों के साथ क्रिकेट खेला करते थे। ज्ञान का पार्क में जाना बहुत कम होता था और सूरज ढलते ही अपने क्वार्टर में चले जाते थे। विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसा चुनार प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से बेहद खूबसूरत कस्बा है। ज्ञान की जूनियर हाईस्कूल तक की शिक्षा चुनार में हुई और इन्होंने चुनार के श्री लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय से आठवीं की बोर्ड परीक्षा मे टॉप किया था और बेहतर पढ़ाई के लिए इन्हें इलाहाबाद भेज दिया गया। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद का राजकीय इंटर कॉलेज (जीआईसी) माना-जाना कॉलेज था। उस दौर में हर बच्चे के माता-पिता का सपना होता था कि उसके बच्चे का एडमिशन जीआईसी में हो जाए। ज्ञान का भी नौवीं क्लास में जीआईसी में एडमिशन हो गया और फिर ज्ञान तरक्की के रास्ते आगे बढ़ते गए। इंटरमीडिएट के बाद ज्ञान ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया, ग्रेजुएशन के दौरान ज्ञान विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में भी दिलचस्पी लेने लगे। उस दौरान के के राय (कमल कृष्ण राय) इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहा करते थे। बाद में लाल बहादुर सिंह छात्र संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। ज्ञान इन छात्र नेताओं के बेहद करीबी थे और वामपंथी विचारधारा से ओतप्रोत थे। ज्ञान अपना बहुत सारा वक्त वामपंथी विचारधारा को आगे बढ़ाने में लगाया करते थे। लेकिन इस दौरान ज्ञान को जो वक्त मिलता था वह अपनी पढ़ाई में भी लगाते थे। लेकिन मैं यहां यह कहना चाहूंगा कि सिविल सर्विसेज के लिए प्रतियोगी जिस तरह से रात दिन एक करके पढ़ाई करते हैं, उस तरह ज्ञान पढ़ाई नहीं करते थे, लेकिन कुशाग्र बुद्धि के ज्ञान के पास मानो ज्ञान का अकूत भंडार था और वह जितनी भी देर पढ़ते थे पूरी तल्लीनता से पढ़ते। यही वजह है कि ज्ञान पहले ही प्रयास में भारतीय प्रषासनिक सेवा (सिविल सर्विसेज) में सफल हो गए और उन्हें आईआरएस कॉडर मिला। इनके पिता आर ए सिंह चुनार में रेलवे गार्ड थे. बेटे का चयन होने पर वे बेहद खुश थे। उस जमाने में ज्ञान चुनार रेलवे कॉलोनी के पहले लड़के थे, जिनका चयन पहली बार सिविल सर्विसेज में हुआ था ज्ञान के चयन की खबर पूरे चुनार वालों के लिए बेहद खुशी की थी, लेकिन ज्ञान ने चयन के बावजूद आईआरएस ज्वाइन नहीं किया और वह सिविल सर्विसेज के अगले अटेम्प्ट की तैयारी में जुट गए। अगले साल यानी वर्ष 1993 में जब सिविल सर्विसेज का रिजल्ट आया तो ज्ञान का चयन आईपीएस कॉडर में हुआ और इन्हें पश्चिम बंगाल कॉडर मिला। इस बार तो परिवार और पूरे चुनार के लिए ज्ञान गर्व का विषय बन गए. और कल तक चुनार वालों के लिए ज्ञान कहलाने वाला यह युवक पश्चिम बंगाल का आईपीएस ज्ञानवंत बन गया। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के ज्ञानवंत के सहपाठी और वरिष्ठ पत्रकार इरफान बताते हैं कि उनका आईपीएस बनना बहुत रोचक है। वह कभी मास लीडर तो नहीं थे लेकिन उनमें ऑर्गेनाइजेशनल पावर गजब का था। छात्र राजनीति में ज्ञान काफी सक्रिय थे। उन्होंने फिलॉसफी में एम ए. किया था, इसलिए उनका अंदाज भी दार्शनिक था। हमेशा से वह पॉइंट टू पॉइंट बात करना ज्यादा पसंद करते थे। सिविल सर्विसेज में उनका चयन कोई लंबी तैयारी के बाद नहीं हुआ बल्कि उन्होंने तो एक दिन अचानक निर्णय लिया कि उन्हें सिविल सर्विसेज क्रैक करना है और अगले ही वर्ष उनका सिलेक्शन हो गया।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष और इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता केके राय कहते हैं कि ज्ञानवंत पढ़ाई में तो अच्छे थे ही, वह भले इंसान भी है. विष्वविद्यालय छात्र राजनीति को लेकर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए राय कहते हैं कि ज्ञानवंत कुशाग्र बुद्धि के साथ-साथ बहुत शालीन व्यक्ति है। अब वह सरकार के उच्च पद पर हैं. उनकी शुभकामनाएं सदैव उनके साथ रहेंगी। यहां उल्लेखनीय है कि चुनौतियों को अवसर में तब्दील करने वाले ज्ञान जब चुनार के रेलवे क्वार्टर में रहा करते थे तो उस जमाने में क्वार्टर में 24 घंटों में मुष्किल से 3-4 घंटे लाइट आती थी. पढ़ाई या अन्य कामों के लिए लालटेन या चिराग पर ही निर्भर रहना पड़ता था। चुनार पहाड़ के किनारे बसा हुआ है इसलिए बारिष के दिनों में अक्सर यहां के रेलवे क्वार्टर में सांप-बिच्छू भी आ जाते थे. विकास से कोसों दूर चुनार में अगर कोई ज्यादा बीमार हो जाता था तो उसे मिर्जापुर इलाज के लिए ले जाना पड़ता था। इसी चुनार रेलवे स्टेशन कॉलोनी के एक क्वार्टर में ज्ञान के पिता आर ए सिंह परिवार के साथ रहते थे. पिता रेलवे में गार्ड थे और वह उस जमाने में नॉर्दन रेलवे मेंस यूनियन के तेजतर्रार नेता थे। तीन भाइयों और एक बहन में ज्ञान दूसरे नंबर के भाई है. ज्ञान के बड़े भाई जसवंत सिंह वॉलीबॉल के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी थे। खेल की बदौलत जसवंत को रेलवे में नौकरी मिल गई थी और सबसे छोटा भाई सतवंत सिंह उस वक्त पढ़ाई कर रहा था. चुनार के टेकौर स्थित श्री लाल बहादुर षास्त्री जूनियर हाई स्कूल से ज्ञान ने आठवीं तक की पढ़ाई की. उस जमाने में क्लास में बैठने के लिए टाट-पट्टी भी ठीक से नहीं रहता था। टीन शेड के नीचे चलने वाले क्लास रूम में पंखे तक नहीं हुआ करते थे.हर षनिवार को छात्र खुद अपने क्लास की सफाई के लिए जमीन को गोबर से लीपते थे। इस स्कूल की एक बात तो काबिलेतारीफ है कि यहां के टीचर्स छात्रों को बहुत ही मेहनत से पढ़ाते थे. हर महीने की फीस 3 रुपए. 50 पैसे होती थी. स्कूल के वृंदावन मास्टर साहब से ज्ञान ट्यूशन पढ़ते थे. टीचर छात्रों का इतना ज्यादा ख्याल रखते थे कि आठवीं की बोर्ड परीक्षा के दौरान स्कूल में ही बच्चों के लिए नाइट क्लास चलती थी. बच्चों को शाम 7 बजे स्कूल जाना पड़ता था और फिर सुबह 7 बजे बच्चे लौट कर घर आते थे. घर पर नाष्ता करने के बाद बच्चे फिर 9 बजे सुबह स्कूल के लिए चले जाते थे. स्कूल की छुट्टी करीब 4 बजे होती थी. इस तरह छात्र षाम को घर पहुंच कर खाना वगैरह खाने के बाद फिर रात को करीब 7 बजे नाइट क्लास के लिए स्कूल पहुंच जाते थे ज्ञान भी नाइट क्लास को बहुत खुशाी-खुशी करते थे. ज्ञान आठवीं तक की पढ़ाई पूरी कर इलाहाबाद यानी आज का प्रयागराज के जीआईसी में नौवीं कक्षा में दाखिला लिया और फिर सफलता की ओर आगे बढ़ते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कदम रखा.
इस तरह भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए पश्चिम बंगाल का आईपीएस कॉडर मिलने के बाद ज्ञान अब ज्ञानवंत सिंह आईपीएस कहलाने लगे और पश्चिम बंगाल में अपने परिश्रम और काबिलियत के दम पर बुलंदियों पर पहुंचने वाले ज्ञानवंत सिंह आज सबसे महत्वपूर्ण पद सुरक्षा निदेशक के साथ-साथ आईजीपी और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के पद को सुशोभित
कर चुके हैं. मौजूदा वक्त में ज्ञानवंत सिंह स्पेषल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) हैं.ज्ञानवंत सिंह का नाम पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सबसे करीबी अफसरों में शुुमार है। इससे भी ज्यादा वह अपनी तेजतर्रार छवि और बेहतरीन पुलिसिंग के लिए जाने जाते हैं. अभी हाल में पष्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमला हुआ और उन्हें जख्मी कर दिया गया तो ऐसी विकट परिस्थितियों से निपटने के लिए चुनाव आयोग ने राज्य सरकार की सिफारिश पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सुरक्षा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के साथ सुरक्षा निदेशक बनाया. फिलहाल, ज्ञानवंत सिंह अब पश्चिम बंगाल की राजनीति का भी हिस्सा बन गए हैं। जिसकी हनक राजधानी दिल्ली तक सुनाई पड़ती है।