संवाददाता
नोएडा। नोएडा से बड़ी खबर है। उत्तर प्रदेश की सीनियर आईएएस अधिकारी अपर्णा यू के पति को नोएडा से गिरफ्तार किया गया है। आंध्र प्रदेश पुलिस की सीआईडी ने अरेस्ट किया है। अपर्णा के पति 3,300 करोड़ रुपये के घोटाले में आरोपी हैं। अपर्णा यू इस वक्त उत्तर प्रदेश में एनएचएम की मिशन निदेशक हैं। वह उत्तर प्रदेश में तमाम महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुकी हैं।
अपर्णा की प्रतिनियुक्ति के दौरान हुआ घोटाला
मिली जानकारी के मुताबिक अपर्णा आंध्र प्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर गई थीं। उस दौरान घोटाला हुआ था। प्रतिनियुक्ति के दौरान आंध्र प्रदेश में अपर्णा ने पति को 3,300 करोड़ रुपये का ठेका दिलाया था। जांच हुई तो अपर्णा और उनके पति शामिल मिले हैं। अपर्णा आंध्र प्रदेश में स्किल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में तैनात थीं। अपर्णा के पति ने फर्जी दस्तावेज के सहारे ठेका लिया था। अब अपर्णा और उनके पति पर 3,300 करोड़ रुपये का घोटाला करने का आरोप है। अब अपर्णा के पति जीबीएस भास्कर को नोएडा से गिरफ्तार किया गया है।
यूपी वापस आकर बनीं यूपीपीसीएल की एमडी
अपर्णा प्रतिनियुक्ति से वापस लौटीं तो उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन (यूपीपीसीएल) का प्रबंध निदेशक बनाया था। यहां भी अपर्णा यू पर पेंशन घोटाले में सीबीआई जांच चल रही है। वह 3,300 करोड़ रुपये के आंध्र प्रदेश में हुए घोटाले में शामिल हैं। जिस विभाग में पति ने घोटाला किया, अपर्णा वहीं तैनात थीं। मिली जानकारी के मुताबिक अपर्णा की भी जल्दी गिरफ्तारी हो सकती है। उनके पति जीबीएस भास्कर को नोएडा से गिरफ्तार किया गया है।
सीमेंस के पूर्व कर्मचारी हैं जीवीएस भास्कर
आंध्र प्रदेश के आपराधिक जांच विभाग को कौशल विकास घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी सुप्रीमो एन चंद्रबाबू नायडू को जोड़ने वाले नए सबूत मिले। इसके बाद जांच एजेंसी ने नोएडा में सीमेंस के पूर्व कर्मचारी जीवीएस भास्कर को गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी उत्तर प्रदेश कैडर की आईएएस अधिकारी यू अपर्णा को मुश्किल में डाल सकती है, क्योंकि उन्हें परियोजना को लागू करने के लिए कौशल विकास निगम की डिप्टी सीईओ के रूप में प्रतिनियुक्ति पर लाया गया था। अपर्णा, भास्कर की पत्नी हैं, जो हवाला चैनलों के माध्यम से आए धन के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक हैं। भास्कर को उसके नोएडा स्थित आवास से उठाया गया था और ट्रांजिट वारंट पर विजयवाड़ा स्थानांतरित किया गया। तत्कालीन सरकार ने हितों के टकराव को छुपाते हुए अपर्णा यू को नियुक्ति दी।
वित्त सचिव की आपत्तियों को दरकिनार किया
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सीमेंस इंडस्ट्रियल सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड से सॉफ्टवेयर खरीदा गया। परियोजना के तहत आपूर्ति किए जाने वाले सॉफ्टवेयर की वास्तविक लागत 58 करोड़ रुपये थी। इस सॉफ्टवेयर की कीमत 3,300 करोड़ रुपये तक बढ़ाई गई। परियोजना रिपोर्ट में हेरफेर किया। राज्य सरकार ने अपना 10 प्रतिशत योगदान 370 करोड़ रुपये जारी किया था। जांच एजेंसी को कई अहम जानकारियां मिलीं, जो पूर्व मुख्यमंत्री की ओर इशारा कर रही थीं। वरिष्ठ नौकरशाह के सुनीता उस समय वित्त सचिव थीं। उन्होंने तीन कारणों का हवाला देते हुए सॉफ्टवेयर खरीद में राज्य का हिस्सा जारी करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने सिफारिश की कि 3,300 करोड़ रुपये की विशाल लागत वाली परियोजना है। लिहाजा, पहले एक पायलट परियोजना शुरू की जानी चाहिए। सीमेंस बिजनेस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना से पहले राज्य का हिस्सा जारी नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रोजेक्ट में सीमेंस की 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है। यह सहायता अनुदान के रूप में है। जब तक कंपनी अपना पैसा खर्च नहीं करती है तब तक राज्य का हिस्सा जारी नहीं किया जाना चाहिए।
सीएम और सीएस ने पैसा जारी करवाया
बाद में तत्कालीन मुख्य सचिव आईवाईआर कृष्णा राव ने तत्कालीन विशेष मुख्य सचिव (वित्त) डॉ.पीवी रमेश को फाइल चलने और नोट फाइल में टिप्पणियों के साथ फंड जारी करने का निर्देश दिया। कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने राज्य के हिस्से को जारी करने के निर्देश दिए हैं। रमेश ने नोट फाइल में यह भी टिप्पणी की कि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के निर्देश पर राशि जारी की जा रही है।