तमिलनाडु । तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ‘सनातन धर्म’ पर अपनी विवादित टिप्पणी पर अड़े हुए हैं। उन्होंने सनातन धर्म को ख़त्म करने की बात कहने वाले अपने बयान पर माफ़ी मांगने से इनकार कर दिया। स्टालिन ने ‘सनातन धर्म’ पर अपनी टिप्पणी पर माफी की मांग पर मीडिया के एक सवाल के जवाब में कहा कि मुझे खेद है और यह उनके लिए माफी नहीं है, यह आपके सवाल के लिए है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधिने सनातन धर्म की तुलना कोरोना वायरस, मलेरिया और डेंगू से की थी और इसे विरोध करने के साथ-साथ इसे नष्ट करने की बात कही थी। उन्होंने शनिवार को चेन्नई में तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स एंड आर्टिस्ट एसोसिएशन की एक बैठक में तमिल में अपने संबोधन में सनातन धर्म को ‘सनातनम’ कहा था और उसकी अलग व्याख्या की थी। यह पूछे जाने पर कि क्या वह जातिगत भेदभाव की प्रथाओं का कोई उदाहरण दे सकते हैं जिन्हें खत्म करने की आवश्यकता है, स्टालिन ने कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था, यह सबसे अच्छा वर्तमान उदाहरण है। नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। अधिवक्ताओं की शिकायत के बाद ‘सनातन धर्म’ पर टिप्पणी को लेकर उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में स्टालिन और कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। दूसरी ओर, इस विवाद के बाद पूरे देश में घमासान मचा हुआ है। सनानत धर्म पर स्टालिन की टिप्पणी को लेकर विभिन्न हलकों में विरोध जताया जा रहा है और उनके बयान की निंदा की जा रही है। दूसरी ओर, भारत के मुख्य न्यायाधीश, डीवाई चंद्रचूड़ को लिखे एक पत्र में, पूर्व न्यायाधीशों और अधिकारियों सहित 260 से अधिक प्रतिष्ठित नागरिकों ने उनसे द्रविड़ मुनेत्र कड़गम नेता उदयनिधि स्टालिन की ‘सनातन धर्म’ टिप्पणी पर ध्यान देने का आग्रह किया है। दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा, जो पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक हैं, ने कहा कि स्टालिन ने न केवल नफरत भरा भाषण दिया बल्कि उन्होंने अपनी टिप्पणी के लिए उन्होंने माफी नहीं मांगी है। यह बयान बड़ी आबादी के खिलाफ घृणास्पद भाषण के समान हैं और भारत के संविधान के मूल पर प्रहार करती हैं जो भारत की परिकल्पना धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में करता है।