अंगदान के लिए प्रेरक बना बुजुर्ग दंपती, बना लिया जिंदगी का मकसद

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मुंबई। मुंबई की दंपति श्रीकांत और नीला आपटे ने समाज को अंगदान करने के लिए जागरूक करने को अपना मकसद बना लिया है। पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति से प्रेरित होकर दोनों ने इसकी शुरुआत की और फिर वीफोर ऑर्गंस फाउंडेशन नाम की संस्था बनाकर लोगों को उससे जोड़ना शुरू किया। पिछले 11 वर्षों में इस दंपत्ति ने हजारों लोगों को देहदान और अंगदान के लिए जागरूक किया है। दोनों के समझाने के बाद दो हजार से ज्यादा लोग मौत के बाद देहदान का फैसला कर चुके हैं। आपटे काका के नाम से पहचाने जाने वाले श्रीकांत ने बताया कि मैं लोगों को यह समझाता हूं कि अंगदान के जरिए वे और उनके रिश्तेदार मरने के बाद भी किसी और के शरीर में जिंदा रह सकते हैं। युवा पीढ़ी में आ रही जागरूकता आपटे काका ने कहा कि युवा पीढ़ी में जागरूकता बढ़ रही है और अगर वे अंगदान के लिए तैयार होते हैं तो लंबे समय तक इसका फायदा मिल सकता है इसीलिए फिलहाल मैं महाविद्यालयों में पढ़ने वाले युवाओं को अंगदान के लिए प्रोत्साहित करने पर जोर दे रहा हूं। फिलहाल मैं मुंबई और पुणे विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को अंगदान के लिए प्रेरित कर रहा हूं। तकनीक इसमें काफी मददगार साबित हो रही है क्योंकि अब ऑनलाइन भी लोगों खासकर युवाओं तक पहुंचा जा सकता है। पुणे में रहने वाले आपटे काका जोनल ट्रांसप्लांट कोआर्डिनेशन कमिटी से भी जुड़े हुए हैं। लाखो लोगों को पड़ती है अंगदान की जरूरत आपटे ने बताया कि देश में हर साल चार लाख से ज्यादा लोगों को अंगों की जरूरत होती है और करीब 30 हजार अंग ही मिल पाते हैं। ऐसे में 3 लाख 70 हजार से ज्यादा लोग हर साल अंग के अभाव में जान गंवा रहे हैं। अगर लोगों में जागरूकता हो तो इनमें से बड़ी संख्या में मौतों को टाला जा सकता है। आपटे ने बताया कि लोग देहदान कर देते हैं लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचाने में कई समस्याएं सामने आतीं हैं। उन्होंने बताया कि अंगदान कर चुके उल्हासनगर के एक व्यक्ति ने महसूस किया कि उसका आखिरी समय आ गया है तो उसने अपनी बेटी को इसकी याद दिलाई और कहा कि मौत के बाद उनका शरीर अस्पताल को दान दे दें। गणेशोत्सव के पहले दिन उन्होंने आखिरी सांस ली इसके बाद उनकी बेटी ने आपटे को फोन किया। आपटे ने बताया कि देहदान के लिए एमबीबीएस डॉक्टर से डेथ सर्टिफिकेट लेना होना है। छुट्टी का दिन होने के चलते कई मुश्किलें आईं साथ ही परिवार भी शव ज्यादा देर तक घर में रखने को तैयार नहीं था। लेकिन समझाने बुझाने के बाद घर में ही त्वचा निकालने की प्रक्रिया पूरी की गई, जिसके बाद पार्थिव शरीर ठाणे के कलवा अस्पताल को दान किया गया।

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